पितृओं के प्रति श्रद्धा प्रकट करने की वेला "श्राद्ध पक्ष" दिनांक 17 सितम्बर से
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दाह संस्कार के दिन को मृत्यु का दिन मान कर करने चाहिए श्राद्ध
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भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा मंगलवार दिनांक 17-09-2024 से पितृ पक्ष प्रारंभ होकर आश्विन शुक्ला प्रतिपदा दिनांक 03-10-2024 को मातामह श्राद्ध के साथ पूर्ण होगा।
ज्योतिष एवं वास्तुविद् आचार्य प्रदीप दवे ने बताया कि इस बार आश्विन कृष्णा प्रतिपदा (एकम्) तिथि क्षय होने से श्राद्ध कर्म निम्न प्रकार होंगे-
दि.17-09-2024 को पूर्णिमा श्राद्ध महालय श्राद्ध,
18-09-2024 को प्रतिपदा (एकम्) के श्राद्ध,
19-09-2024 को द्वितीया के,
20-09-2024 को तृतीया के,
21-09-2024 को चतुर्थी के,
22-09-2024 को पंचमी व षष्ठी के,
23-09-2024 को सप्तमी के,
24-09-2024 को अष्टमी के,
25-09-2024 को नवमी के,
26-09-2024 को दशमी के,
27-09-2024 को एकादशी (ग्यारस) के,
28-09-2024 कोई श्राद्ध नहीं
29-09-2024 को द्वादशी (बारस) के,
30-09-2024 को त्रयोदशी (तेरस)के,
01-10-2024 को चतुर्दशी श्राद्ध,
02-10-2024 को अमावस्या के,
03-10-2024 को मातामह श्राद्ध
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मृत्यु का कौन सा दिन मान कर करने चाहिए श्राद्ध ?-
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हमेशा लोगों में जिज्ञासा रहती हैं कि मृत्यु का दिन कौन सा मानना चाहिए। दाह संस्कार का दिन या साँस थम गई हो वह दिन।
इस विषय में गरुड पुराण एवं वृहद श्राद्ध कौमुदी में स्पष्ट है कि मनुष्य के कपाल में "धनञ्जय" नाम का प्राण वायु रहता है, जो कपाल क्रिया विधि से मुक्त होकर उत्तर दिशा में शिव लोक की ओर महाप्रयाण करता है।
इसीलिए कपाल क्रिया को ही मृत्यु माना है। अतः दाह संस्कार के दिन जो तिथि हो, उसी तिथि को मृत्यु का दिन मान कर श्राद्ध करने चाहिए, क्योंकि इसी दिन कपाल क्रिया होती है और शरीर पंचतत्व में विलीन होता है।
आचार्य प्रदीप दवे ने बताया कि केवल सांसें थमने को मृत्यु नहीं माना है क्योंकि शरीर की सांसें थमने के बाद किडनी 26 घंटे, लीवर 15 घंटे, फेफड़े 8 घंटे, मस्तिष्क 20 मिनट, हृदय 10 मिनट, त्वचा 4 घंटे, आँख 6 घंटे, बाल 6 घंटे, नाखून 6 घंटे व अन्य सभी अंग जीवित रहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि शरीर तो जिंदा है, सिर्फ सांसे बंद हुई है, इसी कारण चिकित्सक सीपीआर, हार्ट पपिंग या वेंटिलेटर से कृत्रिम सांसें देकर पुनर्जीवित करने की कोशिश करते है।
सांसे थमने के बाद शरीर के सभी अंग जीवित रहने कारण ही आँख, किडनी, लीवर आदि अंगो का दान कर सकते हैं, जिसका अन्य शरीर में प्रत्यारोपण होता है।
अतः दाह संस्कार के दिन को ही मृत्यु का दिन मानना चाहिए क्योंकि सांसे रुकने के बाद भी शरीर जिंदा रहता है।
मृतक का पहला श्राद्ध टालना चाहिए-
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मृतक की मृत्यु के बाद जो पहला श्राद्ध आता है, उसे टालना चाहिए क्योंकि पहले जिन पितृओं का श्राद्ध कर रहे हैं उनका अंतिम श्राद्ध करके, फिर बंद करना पडता हैं। इसके बाद आगामी श्राद्ध पक्ष में मृतक का श्राद्ध करना चाहिए।
आचार्य प्रदीप दवे
R.T.S.
ज्योतिष एवं वास्तुविद्
सिरोही (राज.)
96806-58570