सिरोही-
"गणेश चतुर्थी" भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी शनिवार दिनांक 07-09-2024 को मान्य रहेगी।
ज्योतिष एवं वास्तुविद् सिरोही आचार्य प्रदीप दवे ने बताया कि विघ्न विनायक भगवान श्री गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को अभिजित मुहुर्त्त में मध्यान्ह 12.00 बजे हुआ था, अतः गणपति स्थापना का शुभ मुहूर्त दिनांक 07-09-2024 को मध्यान्ह 12-00 से 01-01 बजे के मध्य 12-15 बजे अभिजित मुहुर्त्त में सर्वश्रेष्ठ रहेगा। इसके अतिरिक्त प्रातः 07-57 से 09-30 शुभ वेला में, मध्यान्ह 02-09 से 05-15 लाभ-अमृत वेला में और सायं 06-01 से 07-31 गोधुलिक वेला में भी श्रेष्ठ रहेगा।
■गणपति पूजन के विधान एवं सिध्द प्रयोग-■
1-गणपति भगवान की प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं करना चाहिए। विसर्जन सिर्फ खंडित मूर्तियों का होता है।
2- "ॐ गं गणपतये नमः" का उच्चारण करते हुए भगवान को एक हजार मोदक का भोग लगाने समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
3- अथर्वशीर्ष पाठ के साथ 1000 मोदक का हवन करने से समस्त पापों का नाश होकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4- हरी दूब के आठ अंकुर चढाने से कुबेर के समान धनवान बनते हैं।
5-भगवान को 8 अक्षत (आखा चावल) चढ़ाने से यश, कीर्ति व मेघा शक्ति बढती है।
6- गणपति अथर्वशीर्ष के 1000 पाठ के साथ अभिषेक करने से समस्त विघ्नों का नाश होता है।
■ प्रतिमाओं का विसर्जन क्यों नहीं करना चाहिए ■
ज्योतिष एवं वास्तुविद् आचार्य प्रदीप दवे ने बताया कि भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को अभिजित मुहुर्त्त में भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था तथा दसवें का शुद्धीकरण स्नान हेतु "अनंत चतुर्दशी" को भगवान श्री गणेश और माता पार्वती को जलाशय पर लेकर गये और स्नान करवाकर घर लेकर आये।
इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए आज भी गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की स्थापना करते हैं। दस दिन पूजा अर्चना करते है तथा दसवें दिन अनंत चतुर्दशी को शुद्धीकरण स्नान हेतु भगवान को पवित्र जलाशय पर ले जाकर स्नान करवा कर घर लाते है और बारह महिने पूजा अर्चना करते है।
■ कब शुरु हुई गणपति विसर्जन की परंपरा ■-
बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजो के विरुद्ध देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए ईस्वी सन् 1893 में अर्थात् आज से 131 वर्ष पूर्व गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणपति स्थापन कर अनंत चतुर्दशी को विसर्जन की परंपरा शुरु की, तभी से यह परंपरा चल रही है। इससे पहले घरों में ही गणपति पूजन किया जाता था। शास्त्रों में गणपति विसर्जन का कोई विधान नहीं है।